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वन्दे मातरम बंधुयों,
आज काफी कोशिश करने के बाद भी नीद नही आ रही थी पत्नी और बच्चे शिखर जी (जैन तीर्थ ) गये हुए हैं, अकेला पन खाने को दौड़ रहा था, सोचा चलो रामलीला देख लेते हैं और चल दिए रामलीला देखने को मगर मन वहां भी नही लगा तो वापिस घर आ गया, जबरदस्ती सोने के प्रयत्न मैं अभी आँख लगी ही थी की एक विशालकाय शख्श मेरे सामने आकर खड़ा हो गया …… कहने लगा क्यों राकेश बाबू मेरी मौत के सपने देख रहे हो …
मैं एक दम घबरा गया, मैंने पुछा बंधुवर कौन हैं आप… वह बोला घबराओ मत मैं रावण हूँ ……. मैंने कहा रावण…. कौन रावण? मैं तुम्हे जानता नही तो तुम्हारी मौत का क्यों सोचूंगा……..
वह बोला अरे मैं वही रावण हूँ जिसे प्रभु राम ने तो एक ही बार मारा था मगर तुम मुझे हर साल जलाते हो …….
मैंने कहा अच्छा तुम लंका पति रावण हो, मगर तुम्हे तो प्रभु श्री राम ने मार दिया था, फिर तुम जीवित कैसे हो …..
उसने कहा तुम लाख सर पटको राकेश बाबू मेरा खात्मा सम्भव ही नही है, उस समय पर तो मेरा नाम केवल रावण था मगर आज मेरा नाम बदल कर रक्त बीज रावण हो गया है ……
मैंने कहा रक्तबीज रावण मैं समझा नही ……..
तब वह बोला मेरा दोष केवल इतना था कि मैंने श्री राम जी की पत्नी जो की वन मैं भटक रही थी को उठाया ही था….मैंने उन्हें कभी कुद्रष्टि से देखा तक नही था ……. मगर आज तो मैं हर गली, हर मोड़ पर, भरे समाज से रोजाना सैकड़ों सीताओं का हरण करता हूँ……केवल हरण ही क्यों करता हूँ ……… उनके साथ बलात्कार भी करता हूँ …….. और जरूरत पड़ने पर उनको मार भी देता हूँ ……. क्या कर लिया तुमने मेरा ……… यही क्यों आज मैं संसार के अधिकतम मनुष्यों की आत्माओं पर अपने कब्जा जमा चूका हूँ ……… मेरे काल मैं एक मात्र काण्ड हुआ था ……. सीता हरण काण्ड ……..मगर आज तो मैं नित नये काण्ड कर रहा हूँ …… याद दिलाऊं क्या ?
मैं बेहद घबराया हुआ था कुछ बोल ना सका ……. मुझे चुप देख कर वह आगे बोला ……..
क्या बोफोर्स कांड, चारा घोटाला कांड, पनडुब्बी कांड, प्रतिभूति कांड, चीनी घोटाला कांड, तेलगी कांड, निठारी कांड, नित नये सेक्स कांड, तहलका कांड, चन्द्र स्वामी कांड, और अनेकानेक कांड जो सम्भवत मुझे याद भी नही आ रहे हैं …….. हाँ एक ताजा ताजा कांड याद दिलाता चलूँ ………कामन वैल्थ घोटाला कांड……. क्या कर लिया तुमने अब तक ? और क्या कर लोगे आगे भी मेरा ?
इस रावण कि बातें सुनकर दिमाग सन्न रह गया था मुंह से बोल फूट नही रहे थे…….वह फिर बोला …….
मुझे मारना अब असम्भव है …. मैं रक्तबीज रावण हूँ मेरा रक्त जहां जहां गिर रहा है अनेकानेक रावण पैदा हो रहे हैं ……. मैं सबसे पहले राजनेताओं के खून मैं जाकर घुसा……. वो जाते ही गद्दी से ऐसे चिपकते हैं जैसे भैंस के शरीर से जोंक ……. ये अपनी गद्दी बचाने के लिए कभी धर्म को खतरे मैं बताते हैं, कभी भाषा जाति या देश को और ये जब तक तुम्हारे शरीर से सम्पूर्ण खून निचोड़ नही लेते तुम्हे छोड़ेंगे नही ……
फिर मैं धर्म गुरूओं के शरीर मैं प्रवेश कर गया…. क्योंकि मैं जानता हूँ मेरे बजूद के लिए इनका बजूद अति आवश्यक है ……….
राम और रावण के उस युद्ध को लोगों ने सत्य और असत्य का युद्ध करार दिया था ……. मगर आज तो ये धर्म गुरू जानते हुए भी केवल असत्य और असत्य का युद्ध लोगों को लड़ा रहे हैं…… मैं भली भांति जानता था कि ईस्वर एक है…. और मैं तो अपनी गलतिओं के प्रायश्चित के लिए उस युद्ध को लड़ रहा था, ये धर्म गुरू भी जानते हैं कि ईस्वर एक है …… फिर भी ये तुम्हे आपस मैं लड़ा रहे हैं ……… ये कभी कहते हैं मन्दिर खतरे मैं है …….. कभी कहते हैं मस्जिद खतरे मैं है …… कभी धर्म पर खतरा बताते हैं ….. कभी इस्लाम खतरे मैं है ………मैं इन नये नारों मैं सदैव जीवित रहूँ ……. कुछ नही बिगाड़ सकते तुम मेरा……क्या कर लिया हैं इन नेताओं और धर्म गुरूओं का तुमने …….
मैं बेहद घबराया हुआ था…….. मुंह है शब्द निकलने को तैयार ही नही थे …….. तभी मुझे याद आया रामायण के ही अनुसार रावण महा विद्वान था….. उसके अंतिम समय प्रभु श्री राम ने लछमण को राजनीती का ज्ञान लेने के लिए रावण के पास भेजा था और रावण ने लछमण को निराश नही किया था……. मैं हिम्मत करके रावण से बोला ……. आपको महा विद्वान कहा गया है….
आपने लछमण को राजनीती का ज्ञान दिया था.. आप तो स्वर्ग जा चुके हैं …….. क्या कोई ऐसा रास्ता बता सकते हैं ….. जिससे हमे आपसे मुक्ति मिल सके …………
तब रावण बोला बहुत चालक है बच्चे ……. अरे राम ने तो मेरी मौत का तरीका विभीषण से पुछा था ……और तुम मुझसे ही मेरी मौत का तरीका पूछ रहे हो …….. चलो पूछ रहे हो तो मैं तुझे विभीषन बनकर अपनी मौत का तरीका बता रहा हूँ ….. क्योंकि मैं जानता हूँ तुम मुझे मार नही सकते ……… इसलिए बता रहा हूँ कि तुम वह कर ही नही सकते ……..
मैंने कहा आप बताइए तो सही मैं कोशिश करूंगा ………
तब रावण बोला सुनो …… मेरी नाभि मैं एक अम्रत कलश था उसके ही सूखने पर श्री राम का मुझे मारना सम्भव हो सका था …… आज वह अम्रत कलश मैं तुम सभी के शरीर मैं ……. काम, क्रोध, मद, लोभ और लालच के रूप मैं डाल चुका हूँ ……. अगर सम्भव है तो इस अम्रत कलश को सुखा कर दिखाओ …….. मैं तुम सबके अंदर व्याप्त हो चुका हूँ ……. पहले अपने अंदर का रावण मार कर दिखाओ ………
क्यों जलाते हो हर साल मुझको,
पहले अपने अंदर से मुझे तुम जलाओ,
तुम मैं कही कोई राम नही है,
गर हिम्मत है राम बनके दिखाओ……..
और रावण अट्टहास करते हुए चला गया ……. मेरी नींद खुल गई देखा सवेरा हो चला था ….. रावण का वो सुलगता सवाल अब तक मेरे दिमाग मैं है…… क्या हम अपने अंदर का रावण मार सकेंगे ?
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