संघर्ष एनजीओ
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अलग हमारे मजहब,
बेशक धर्म हमारे जुदा जुदा,
मैं मन्दिर मैं सर झुकाऊं,
तू काबे मैं करता सजदा……..
पर तुझ मैं और मुझे मैं यारा,
खून तो केवल लाल ही है,
फाकों से मैं भी मरता हूँ,
भूख से तू भी बेहाल ही है……..
यहाँ सदा ही साझी रही,
तेरी मेरी ईद दीवाली,
तुझ मैं मुझ मैं कब फर्क करे,
तेरे मेरे बाग का माली……..
कब वायु ने जीवन देने मैं,
किया यहाँ पर तेरा मेरा
सूरज से मेरा घर रोशन,
वही तेरे घर किया नया सवेरा………..
मैं भी माँ के गर्भ रहा,
और तू भी माँ के गर्भ मैं खेला,
एक ही राह से आकर हमने,
देखा ये दुनिया का मेला……..
तू गला काटना चाहता मेरा,
काट मगर इतना तो बता,
तू मुझसे और मैं तुझसे हूँ,
हम मैं आखिर फर्क है क्या ?………
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